Sunday 25 March 2018

ए. राजा के साथ एक दिन

#ARAJA #VIJAYMANOHARTIWARI #2G
वकालत तक पढ़ाई करने वाले अनुसूचित जाति के डीएमके के एक युवा सांसद ए. राजा यूपीए सरकार में टेलीकाॅम मंत्री बने थे और उनके ही समय टू-जी स्पेक्ट्रम का आवंटन हुआ था। वे नीलगिरि सीट से दूसरी बार चुनाव मैदान में थे। यह एक लाख 76 हजार करोड़ के घोटाले के केंद्रीय पात्र की चुनावी सीट थी, जहां से बीजेपी उम्मीदवार एस. गुरुमूर्ति अपना नामांकन खारिज करा चुके थे। चर्चाएं थीं कि मजबूत स्थिति के बावजूद वे राजा के साथ अपना मैच फिक्स कर चुके थे और चुनावी संघर्ष में पडक़र एक महीने बाद नतीजों का इंतजार करने की बजाए उन्होंने अपने लिए फौरन फायदे के विकल्प को चुना था।
मैं मदुरई से निकलकर एक शाम नीलगिरि के लिए रवाना हुआ। सुबह के करीब मट्टपलायम नाम के शहर में पहुंचा, जहां से ऊटी के पहाड़ शुरू होते हैं। गर्मी भयावह थी। मैं बुरी तरह थका हुआ था। दोपहर तक होटल में सोता रहा। राजा अगले दिन यहीं से अपना चुनावी अभियान शुरू करने वाले थे। राजा के निजी सहायक रोच को मैंने कई बार फोन किए। आखिरकार दोपहर बाद मैं ऊटी रोड पर उस बंगले में जा पहुंचा, जहां से नीलगिरि के सांसद का दफ्तर चलता था। कुछ कार्यकर्ता वहां मौजूद थे। किसी को अटैंड करने के लिए रोच के सिवा कोई नहीं था। रोच बाहर थे। अब की बार उसने फोन पर मुझे रात दस बजे बुलाया।
तब तक मैं कई स्थानीय लोगों से मिला। टू-जी का प्रसाद पता नहीं किस-किसको किस-किस ढंग से बटा था। जैसे मट्टपलायम के मेन रोड पर आर्य भवन रेस्टॉरेंट में उस रात राजा के बंगले पर लौटने के पहले मैं मसाला डोसा खा रहा था। गले में काले-लाल दुपट्टे डाले आसपास मौजूद डीएमके कार्यकर्ताओं पर मेरी निगाह गई। मैंने उनसे बातचीत शुरू की। मैं राजा के बारे में जानना चाहता था। पेशे से टेलर एक शख्स से मुझे मिलवाया गया। यह रवि चंद्रन था। उसके बीवी-बच्चे पिछले साल भवानी नदी की बाढ़ में बह गए थे। लाशें मिली थीं। वह रोता-बिलखता एक दिन राजा के सामने पहुंचा। डीएमके कार्यकर्ताओं ने मुझे बड़े कृतज्ञ अंदाज में कहा, ‘राजा ने एक लाख रुपए की मदद दी।’ रवि चंद्रन इस चुनाव में कपड़ों की सिलाई छोडक़र राजा की ध्वजा थामे था।
डोसा खत्म करके मैं तय वक्त से कुछ पहले ही उस बंगले पर पहुंच गया। इंतजार करते-करते रात के साढ़े ग्यारह बज गए थे। मुझे सिर्फ राजा का अगले दिन का प्रोग्राम चाहिए था और उनसे इंटरव्यू के लिए थोड़ा सा वक्त। पहले रोच कहते रहे कि वे रास्ते में हैं। पहुंचने में थोड़ी देर लगेगी। कुछ स्थानीय लोगों से ही पता चला कि राजा पास के ही किसी होटल में हैं या आने वाले हैं। रोच वहीं होंगे। मैं असमंजस में था। आज का दिन बीत गया था और मेरे हाथ कुछ नहीं लगा था।
मुझे लगा कि मैं अपना वक्त बरबाद कर रहा हूं। मैं अपने होटल लौट आया। मगर रोच का कोई जवाब नहीं आया। शायद बंगले पर लौटने के बाद उसने यह जहमत भी नहीं की कि कौन बार-बार फोन करते हुए बंगले पर उसका इंतजार कर रहा था, जो बाकायदा वक्त लेकर आया था। नेताओं के साथ खासतौर से चुनावी मौसम में यह कोई नई चीज नहीं थी। मैंने इसे सामान्य ढंग से लिया। वैसे भी हिंदी के इलाके से आए किसी पत्रकार में दूर दक्षिण के एक प्रत्याशी के स्टाफ को कितनी दिलचस्पी होती? वह क्यों मेरी ज्यादा परवाह करता? खैर मैंने अगली सुबह जल्दी लौटने का फैसला किया ताकि राजा की मुहिम के वक्त सीधे रूबरू हो सकूं।
मैं सुबह आठ बजे फिर पहुंचा। गांवों से आए तीस-चालीस कार्यकर्ता ही वहां दिखाई दिए। उन्हें कतार से बैठने के लिए कहा जा रहा था। थोड़े ही समय में मुझे अंदाजा हो गया कि राजा का अभियान यहां से नहीं किसी और जगह से शुरू हो रहा होगा। रोच का मोबाइल स्विच ऑफ था। वह उस वक्त बंगले में ही कहीं सो रहे थे। वे रात को देर से लौटे थे। अब मेरी कोई दिलचस्पी रोच में नहीं थी। मैं तो उनके बॉस से मिलने आया था। उसी वक्त वहां मौजूद एक कार्यकर्ता ने मुझे बताया कि आपको रोच के पीए से बात करना चाहिए।
‘आप कौन?’ मैं बुरी तरह भन्नाया हुआ था।
‘मैं पेरम्बलूर में राजा का सहायक हूं। निजाम।’ उसने एक महंगे मोबाइल पर खुद को व्यस्त रखते हुए कहा।
‘रोच के पीए कौन हैं?’
‘अशरफ। आप रुकिए मैं उनका नंबर देता हूं।’ वह बोला।
मुझे बहुत गुस्सा आया। मेरे पूरे चौबीस घंटे बरबाद हुए थे। मैं राजा से मिलने आया था। राजा के पीए के पीए से मिलने नहीं। मैंने निजाम से गुजारिश की कि वह मेहरबानी करके मुझे यह बता दे कि राजा का अभियान कहां से शुरू होने वाला है और उन तक मेरा संदेश पहुंचा दे। मगर वह राजी नहीं हुआ, क्योंकि मैं पहले ही रोच के संपर्क में जो था। अब मेरे लिए जो कुछ भी करना था, रोच साहब को ही करना था। अशरफ का नंबर देकर वह चला गया। मैंने वह नंबर वहीं फाडक़र फेंक दिया। किसी अशरफ में मेरी रुचि नहीं थी।
किसी और से मैंने पता किया कि राजा हैं कहां। नाम के राजा और टू-जी के महाराजा ब्लैक थंडर नाम के एक वैभवशाली रिजॉर्ट में थे, जो उनके बंगले से करीब दो किलोमीटर के फासले पर ऊटी जाने वाली सडक़के दाहिनी तरफ घने जंगल में था। केले और नारियल के पेड़ों की हरियाली से घिरी सैलानियों की एक सबसे शानदार रिहाइश। मैंने रोच को मन ही मन हजार गालियां दीं और किसी को बताए या किसी से पूछे बिना सीधे ब्लैक थंडर के उस ब्लॉक के सामने जा पहुंचा, जहां सफेद लुंगी और शर्ट पहने नेता टाइप लोगों की गहमागहमी थी। कई बड़ी गाडिय़ां खड़ी थीं और सुरक्षा के लिए कुछ जवान भी। आधे घंटे तक मैं वहीं तफरीह करते हुए हर हलचल को समझने की कोशिश करता रहा।
मैं बिल्कुल सही जगह पर आया था। राजा यहीं सुईट नंबर एक में थे। यह उन्हीं के लिए रिजर्व था। अक्सर जब मुश्किल होती है तो संयोग भी गजब के होते हैं। यहां का इंतजार अखरने वाला नहीं था, क्योंकि मैं अपने लक्ष्य के निकट था। ऐसी जगह किसी भी पल आपको हेडलाइन हासिल हो सकती है। जब पौन घंटे हुए तो दो शख्स मेरे पास खुश होते हुए आए। इन्होंने मुझे बंगले पर अपने किसी सीनियर से बातचीत करते हुए देखा होगा। मैं फौरन उनसे घुलमिल गया। मैंने यहां आने का अपना मकसद उन्हें बताया। वे तमिल के अलावा टूटी-फूटी अंग्रेजी जानते थे। मेरा काम चल गया था। उन्होंने मुझे वहीं लॉन में टहल रहे एक दूसरे शख्स से मिलवाया, जो उस वक्त मोबाइल कान से लगाए था। जब तक वह फ्री हुआ तब तक मैं उन्हीं से बातों ही बातों में उसकी जड़ों में जा चुका था। यह रघु था। पेरम्बलूर का रहना वाला। राजा का नजदीकी रिश्तेदार। इस शख्स की जिम्मेदारी थी प्रचार के दौरान राजा के ठीक आगे वाली गाड़ी में रहना। उनकी ताजा तस्वीरें नीलगिरि एमपी की फेस बुक प्रोफाइल में दिन भर अपडेट करते रहना।
वह फ्री हुआ तो मैंने नए सिरे से अपना परिचय उसे दिया। मैंने इस दौरान हर शख्स से अपनी मुलाकात में यह फीड बैक जरूर दिया कि राजा के समर्थन में माहौल बहुत अच्छा है। लोग यहां टू-जी को नहीं राजा की रहमतों को याद करते हैं। माहौल पक्ष में है। यह सही भी था। यह अनुकूल फीड बैक मुझे उनसे जोडऩे में मददगार साबित हो रहा था। रघु ने मेरी मुश्किल आसान करते हुए सुझाया कि आप थोड़ा सा इंतजार कर लें। राजा अभी निकलने ही वाले हैं। आप यहीं रोक लेना। वह बात करेंगे। अब कहीं जाकर मुझे तसल्ली हुई। यह काम इतना मुश्किल भी नहीं था। ऐसे पीए और ऐसा स्टाफ अक्सर कबाड़ा करने का काम ही ज्यादा करता है। अल्लाह तो अद्भुत है मगर कम्बख्त मुल्लों का दुनिया में कोई इलाज नहीं है!
अब राजा से बात न भी होती तो मैं उनकी चुनावी मुहिम में तो शामिल होचुका था। मैं सुईट के करीब जा पहुंचा। भीतर राजा दिखाई नहीं दे रहे थे मगर हॉल में आठ-दस लोग हाथ बांधे शायद उन्हीं के सामने खड़े थे। एक-एक कर कुछ कह रहे थे। इतने ही लोग बाहर इंतजार कर रहे थे। ये सब डीएमके के आम कार्यकर्ता या पदाधिकारी कम और राजा के कुशल चुनाव प्रबंधक ज्यादा लग रहे थे। अचानक झकास सफेद कडक़ कलफदार लुंगी और पूरी बांह की सफेद शर्ट पहने राजा प्रकट हुए। सबसे पहले उन पांच-छह लोगों से मिले, जो दरवाजे के बाहर उनके इंतजार में थे। दस-पांच सेकंड में उनसे बात करते हुए आगे बढ़े।
मैंने अपना हाथ उनकी तरफ बढ़ाया और अपने परिचय के साथ आने का मकसद बताया, ‘मैं सिर्फ आपकी वजह से इस इलाके में आया हूं। दो दिन में कई लोगों से मिला हूं। सोचा कि आपका प्रचार भी देख लिया जाए। अगर मुमकिन हो तो बात करना चाहता हूं। हम रास्ते में चलते हुए भी बात कर सकते हैं।’
मैंने उन्हें कुछ कहने या टालने का कोई मौका दिए बिना अपनी पूरी बात कह दी थी। वह मुझे घूर रहे थे। तब तक लॉन में टहल रहे कुछ और लोग उनके पास आ गए। राजा ने उनसे मुखातिब होने के पहले मुझसे कहा, ‘प्लीज कम विथ मी इन माई व्हीकल। वी विल टॉक ऑन द वे।’
राजा बाहर उनसे बात करने लगे तब तक बिना एक पल गंवाए मैं उनकी सफेद मोंटेरों की पिछली सीट पर जा बैठा। यहां न निजाम कहीं नजर आ रहा था, न रोच। सीधे राजा सामने थे। राजा के पास अपनी राम कहानी सुनाने के लिए काफी कुछ था। सबसे पहले वे कांग्रेस पर बरसे। खुद को बेकसूर बताया। यहां तक कि टू-जी नाम के किसी घोटाले के अस्तित्व से ही इंकार किया। उसे बिल्कुल ही कपोल-कल्पित बताया। मैं चुपचाप उनकी बात सुनता और डायरी में नोट करता रहा।
‘हर फैसला सरकार की पॉलिसी के मुताबिक हुआ था। हर चीज की जानकारी प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को थी। कोई घोटाला है ही नहीं। मुझे तो टेलीकॉम क्षेत्र में क्रांति के लिए याद किया जाना चाहिए था। मैंने मोबाइल कॉल्स की दरें इतनी कम करा दीं कि आज भारत के हर छोटे आदमी के हाथ में भी मोबाइल फोन है।’
‘यूपीए एक रीढ़विहीन सरकार है, जो अब भूतकाल में होने जा रही है। वे अपने एक केबिनेट मिनिस्टर को भी नहीं बचा सके। मैंने एक ऐसे घोटाले के नाम पर 15 बेशकीमती महीने जेल में काटे, जिसका असलियत में कोई वजूद ही नहीं था।’
‘फिर वह सीबीआई, इनकम टैक्स, सीएजी, जांचें, रिपोर्टें, सुप्रीम कोर्ट...यह सब क्या था?’
‘देश में व्यवस्था के नाम पर अराजकता है। सारी एजेंसियां अपनी मनमानी के लिए आजाद हैं। किसी का दूसरे पर कोई काबू नहीं है। सीबीआई का अंदाजा है कि घोटाला 33 हजार करोड़ का है। सीएजी के विचार हैं कि एक लाख 76 हजार करोड़ का है। एक आंकड़े पर ही कोई एकमत नहीं है। इन दोनों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट एक तीसरा ही नजरिया तय करता है। हकीकत तो यह है कि यहां किसी के साथ कुछ भी हो सकता है।’
‘अगर ऐसा ही है तो अब आपने क्या तय किया?’
‘कोई नेता ऐसी हिम्मत नहीं दिखा सकता। मैंने अपने वोटरों के बीच एक पम्फलेट जारी किया है। पूरा केस उनके सामने पेश कर दिया है। मैं अपना फैसला उनसे ही लूंगा।’ तमिल में प्रकाशित वह पम्फलेट मेरे पास था। उसके कवर पर लिखा था, ‘आपकी अदालत में मेरा फैसला।’ इसके ठीक नीचे एक बड़ी तस्वीर उस वक्त की थी, जब ग्रे कलर के सफारी सूट में राजा सीबीआई अफसरों से घिरे गिरफ्तारी के बाद जेल ले जाए जा रहे थे। इसे किसी शहादत की तरह पेश किया गया था।
‘आप अब कांग्रेस को कोस रहे हैं। उनसे आपका काफी पुराना गठबंधन था। उसका क्या?’
राजा ने वकालत तक पढ़ाई की थी। उनके पास हर सवाल की काट थी, ‘मान लीजिए आप मेरे दोस्त हैं। आपमें कोई ऐब नहीं है। अचानक आप शराब पीना शुरू कर देते हैं। हमारी दोस्ती खत्म हो जाएगी। कांग्रेस से हमारा संबंध मुद्दों पर आधारित था।’
मुद्दों पर आधारित। सिद्धांतों का सवाल। उसूलों की लड़ाई। न्याय की बात। सम्मान का प्रश्न। भारतीय राजनेता इन शब्दों को इस हद तक निचोड़ चुके थे कि अब इनमें कोई रस बचा नही था। वे इन्हें इतना बेमतलब बना चुके थे कि खुद बोलते हुए उन्हें भी इस बात का भरपूर अहसास होता होगा कि इन खोखली बातों में कोई दम नहीं रह गया है। इन्हें बस ऐसे ही मौकों पर मंत्रों की तरह दोहराना भर होता था। वे यह भी जानते थे कि सामने कोई मूर्ख नहीं है। मगर सामने वाले भी समझते थे कि इस मौके पर दोहराने के लिए इनके पास कोई दूसरे शब्द ही नहीं है। राजा यही कर रहे थे।
बीसेक मिनट बाद हम एक गांव में जा पहुंचे, जहां राजा के स्वागत में डीएमके के काले-लाल रंग के झंडों जैसे कपड़ों से सजी एक खुली जीप तैयार थी। पहाड़ी गांवों की तरफ आज यहां से राजा की चुनावी मुहिम शुरू होनी थी। मोंटेरो से उतरने के पहले अपनी सीट पर पलटकर राजा ने मुझसे पूछा कि आप यहां काफी लोगों से मिले होंगे। कई बातें हुई होंगी। लोग मेरे बारे में क्या कहते हैं?
मैंने मुस्कराकर उनसे कहा कि आपकी पिछली जीत का फर्क 85 हजार वोटों का है। इस अंतर को पाटना आपके प्रतिद्वंद्वी के लिए आसान नहीं होगा। इसमें कोई दो मत नहीं कि शहरी वोटरों में टू-जी को लेकर आपके प्रति कुछ हिचक है मगर गरीब तबके के लोगों को आपकी दी हुई हर मदद याद है और इसके कई किस्से मैंने सुने हैं। मेरी बात सुनकर उन्हें तसल्ली हुई और उनके दो सहायकों को भी जो पिछली सीट पर मेरे दोनों तरफ बैठे हुए हमारी बातचीत को सुन रहे थे। मगर वे सिर्फ तमिल जानते थे। इसलिए समझे नहीं कि बात हुई क्या थी। मगर बॉस खुश होकर गाड़ी से उतरा था सो उन्हें लगा कि हमारी यह बातचीत बड़ी मजेदार थी। मैं राजा के उस दिन के डे-प्लान में अचानक दाखिल हुआ था। राजा के दोनों सहयोगी शायद इस भ्रम में भी थे कि राजा और मैं पुराने परिचित हैं। जो भी हो उस दिन बंगले से कूच करने का मेरा फैसला सही समय पर लिया गया सही फैसला था वर्ना एक और दिन का बरबाद होना तय था।
आज का दिन शुरू करने के पहले यह एक तरह से राजा के लिए भी शुभ समाचार था कि उनके वोटरों का रुझान उनके प्रति है। वे झटपट विदा हुए। मैंने उनसे अगली बार दिल्ली में मिलने का वादा किया और हम दोनों कार से बाहर निकल आए। कुछ लोगों ने उन्हें फूल मालाएं पहनाईं। राजा जीप पर सवार हुए। तमिल में सबको वणक्कम के साथ संक्षिप्त भाषण दिया। टू-जी के लिए खुद को बेकसूर बताया। वे आगे बढ़ गए।
मैं मट्टपलायम अपने होटल में लौट आया। अब मुझे उस बेरौनक बंगले पर जाने की कोई जरूरत नहीं थी, जहां रोच आराम फरमा रहे थे। मुझे पीए के पीए से भी कोई लेना-देना नहीं था।
‘भाड़ में जाओ तुम।’ मैंने बंगले के सामने से गुजरते हुए मन में कहा। चालीस डिग्री की गर्मी में मैंने दो यादगार दिन ऊटी में बिताए। मट्टपलायम से मैं तुरंत ही निकल गया था। देर शाम जब कूनूर होकर ऊटी पहुंचा तो वहां ठंडक थी। लोग स्वेटर में घूम रहे थे। ईएमएस मयूरा होटल के मैनेजर प्रशांत ने मुझे ऊटी के एक होटल मालिक सुंदर का नंबर दिया था, जहां से देखने लायक सारे ठिकाने आसपास ही थे। मैं वहीं रुका। यहां की चहल-पहल देख मुझे पिछले साल इन्हीं दिनों की उत्तराखंड यात्रा की यादें ताजा हुईं, जब चार धाम यात्रा शुरू हुई थी और गांव-कस्बों में सारे होटल धुल-पुतकर दुल्हन की तरह सजकर तैयार थे। ऊटी में होटल कम्फर्ट इन की दीवारें, दरवाजे और कमरों से भी ताजे ऑइल पेंट की महक गई नहीं थी। सैलानियों का सीजन शुरू हो चुका था। अब दो महीनों के लिए ऊटी में हर चीज की कीमतें आसमान पर थीं।
(पुस्तक-भारत की खोज में मेरे पांच साल-से)
#vijaymanohartiwari
22 दिसंबर 2017
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