बाहुबली
देखी। मुझे लगता है यह यश
चोपड़ाओं,
करन
जौहरों,
सूरज
बड़जात्याओं,
महेश
भट्टों अौर सुभाष घइयों की
हिम्मत और हैसियत के बाहर का
फिल्मांकन है। बेमतलब लव
स्टोरी,
बकवास
फैमिली ड्रामे और बेहूदी
कहानियों पर कूड़ा मनोरंजन
परोसने वाले हिंदी सिनेमा के
समकालीन बड़े नाम वाले सस्ते
फिल्म मेकर्स की समूची क्षमता
के बाहर की बात थी-बाहुबली।
महान कल्पनाशीलता से भव्यता
के चरम को बड़े परदे पर रचने
वाली यह कृति दक्षिण भारतीयों
के बूते की ही बात थी। जिन्होंने
कर्नाटक में महान विजयनगर
साम्राज्य के खंडहर देखे हैं,
उन्हें
बाहुबली का कोई भी विराट दृश्य
चौंकाएगा नहीं।
बेल्लारी
के पास हम्पी में पांच सौ साल
पहले का यह साम्राज्य अंतिम
हिंदू साम्राज्य के रूप में
याद किया जाता है,
जिसने
भारत की भव्यता के सबसे ताजा
और जानदार नमूने रचे। सिर्फ
सवा दो साल यह शहर जीया और
तालिकोट की प्रसिद्ध लड़ाई
में पांच बहमनी सुलतान बहेलियों
ने मिलकर इसे मिट्टी में मिला
दिया। पुर्तगाली और अंग्रेज
रिसर्चरों-लेखकों
ने इसके हैरतअंगेज विवरण लिखे
हैं। दक्षिण के वैभव को
आंध्रप्रदेश में तिरुपति,
तमिलनाडु
मंे तंजौर,
कर्नाटक
में मैसूर,
केरल
में पद्मनाभ स्वामी टेंपल और
तेलंगाना में निजाम के किस्सों
में देखा-सुना
जा सकता है।
दक्षिण
में विकसित और बचे रह गए आर्ट,
कल्चर,
आर्किटेक्ट,
म्युजिक,
डांस
की मालामाल परंपरा के सबूतों
की कोई तुलना उत्तर भारत से
नहीं हो सकती। उत्तर भारत में
दसवीं सदी के बाद इतिहास पर
छाया गहरा अंधेरा है और उसमें
से निकले अवशेषों पर हम आज के
धुंधले से भारत को देखते हैं।
दक्षिण भारत ही वह जगह है,
जहां
भारत की पौराणिक सुगंध अब तक
हवाओं में है। प्राचीन भारत
की महानता के जिंदा सबूत दक्षिण
के चप्पे-चप्पे
में हैं। देश के नक्शे पर उत्तर
और मध्य में भारत गौड़,
नालंदा,
विक्रमशिला,
अयोध्या,
मथ्ुरा,
वाराणसी,
दिल्ली,
अजमेर,
विदिशा,
धार,
मांडू,
देवगिरि
तक के खंडहरों में अपनी
क्षत-विक्षत
स्मृतियों में आहत और धूलधूसरित
है। इतिहास की यात्रा में ये
पड़ाव भारत को सदियों तक धुएं
और राख में धकेलने वाले रहे
हैं। अल्लाह का शुक्र है कि
दक्षिण में काफी कुछ साबुत
बचा रह गया।
सोने
के प्रति दक्षिण के लोगों में
गजब का लगाव है। विवाह में
गरीब घर में भी दस-बीस
तौला सोना चढ़ता ही है। हर पांचवा
होर्डिंग वहां किसी आभूषण
वाले का ही दिखाई देगा। आभूषणों
का कारोबार हमारे परंपरागत
सराफे के कारोबारियों जैसे
नहीं,
बल्कि
बड़े मॉल जैसे हैं,जिसकी
एक फ्लोर पर सिर्फ चांदी,
दूसरी
पर सोना और ऊपर हीरे-जवाहरात
के जेवर जाकर पसंद कीजिए। बड़े
ब्रांड,
जो
दक्षिण के हर शहर में हैं। अब
आप बाहुबली के किरदारों के
सिर्फ आभूषण ही गौर से देखिए।
शायद उत्तर वालों के लिए यह
सामान्य ज्ञान हो कि शरीर की
शोभा के लिए स्वर्ण के किस-किस
आकार-प्रकार
के आभूषणों की कल्पना हमारे
सौंदर्य शास्त्रियों ने कभी
की होगी।
विजयनगर
के खंडहर हो चुके मंदिरों में
पांच सौ साल पहले के समृद्ध
भारतीय जनजीवन की ऐसी ही अनगिनत
तस्वीरें पत्थरों पर खुदी
हैं। महान कृष्णदेव राय के
समय का विजयनगर बाहुबली की
माहिष्मती से कहीं कम नहीं
था। तुंगभद्रा नदी के किनारे
फैले उसके खंडहर आज भी अपने
शानदार वैभव की गवाही दुनिया
को देते हैं। सब कुछ हैरतअंगेज
सा है। परदे पर लगता है कि
कृष्णदेव राय के विजयनगर में
फिल्मांकन हो रहा हो।
एक
हजार साल पहले तंजौर में राजा
राजा ने बिग टेम्पल के रूप में
वही आश्चर्य रचा था,
जो
राजामौलि ने सिनेमा के परदे
पर रचा। आर्किटेक्ट का ऐसा
नायाब नमूना,
जिसे
देखने दुनिया भर के इतिहासप्रेमी
यहां आकर दांतों तले उंगलियां
दबा लेते हैं। 2010
में
करुणानिधि ने उसका एक हजार
सालवां जलसा मनाया था। बाहुबली
में राजमाता द्वारा भेजे गए
विवाह प्रस्ताव के साथ स्वर्ण
उपहारों की झलक ने याद दिलाया
कि कृष्णदेव राय विजयनगर से
सात बार तिरुपति आए थे और
स्वर्णदान के प्रसंग इतिहास
में अंकित हो गए। भगवान वेंकटेश
के शिखर पर मढ़ा सोना राजा
कृष्णदेव राय के दान में मिले
सोने को गला कर ही मिला था।
दक्षिण भारतीय भाषाओं में
राजा कृष्णदेव राय पर अनगिनत
फिल्में बनी हैं।
तमिलनाडु
में सिने सितारों की हैसियत
हम जानते हैं। रजनीकांत की
लोकप्रियता अमिताभ से हजारों
गुना ज्यादा है। उत्तर भारत
में जब दीपावली के दिन लोग
घरों में लक्ष्मी पूजा की
सजावट को अंतिम रूप देने में
व्यस्त होते हैं तब तमिलनाडु
में लोग नए कपड़े पहनकर अपने
दोस्त-परिजनों
के साथ उस दिन रिलीज हुई फिल्में
देखते हैं। घरों से ज्यादा
रौनक उस दिन सिनेमाघरों की
होती है,
जब
महंगे बजट की मेगा फिल्में
दीपावली पर परदे पर आती हैं।
करुणानिधि,
एमजी
रामचंद्रन,
जयललिता,
विजयकांत,
एनटी
रामाराव जैसी सिनेमा जगत की
हस्तियाें को वहां के अवाम
ने राजनीति में भी महानायक
बनने का मौका दिया। हमारे यहां
भी अमिताभ,
विनोद
खन्ना,
शत्रुध्न
सिन्हा,
हेमा
मालिनी,
जया
प्रदा,
जया
बच्चन जैसे किरदार सियासत
में आए। कौन कहां है देख लीजिए।
हम
कल्पना भी नहीं कर सकते कि राम
या कृष्ण के समय भारत कैसा रहा
होगा?
बाहुबली
की कहानी काल्पनिक हो सकती
है किंतु चकाचौंध कर देने वाली
पृष्ठभूमि और दृश्यों में
उसे रचा गया है,
उसने
भारत के सनातन स्वरूप की एक
झलक ही दिखाई है। इस लिहाज से
कुछ भी काल्पनिक नहीं है। अगर
बाहुबली नहीं देखी है तो
नहाना-धोना
बाद में पहले देख आइए। इसके
बाद कभी दक्षिण भारत की यात्रा
का लंबा प्लान बनाइए।
दक्षिण
में दीवानगी सिर चढ़कर बोलती
है।