Monday 2 February 2015

एक चाय बागान की कहानी

दार्जिलिंग से सटे रेड बैंक चाय बागान में मौत का सन्नाटा पसरा है। पिछले दस महीनों में 46 मजदूरों की मौतें हुई हैं। उजाड़ बस्ती के बेरौनक घरों में भोजन के नाम पर सूखे चावल भर हैं। हर घर में कोई न कोई बीमार है। 11 सालों से बंद बागान को फिर से शुरू करने की दो कोशिशें नाकाम रहीं। किसी समय 12 लाख किलो चाय के सालाना उत्पादन वाले इस बागान के कारखाने की सारी मशीनरी बेकार हो चुकी है। पेड़ों से चाय पत्तियों की कटाई का काम मजूदरों की ही एक समिति कर रही है। करीब तीन सौ मजदूर इससे जुड़े हैं। यह काम भी हफ्ते में तीन दिन हो पाता है।

 बदहाली का सबसे बुरा असर बच्चों पर पड़ा। 12 साल की उम्र से सैकड़ों बच्चे अपने परिजनों के साथ मजदूरी करते देखे जा सकते हैं। लगातार मौत की घटनाओं के बाद गत जून में सरकार के तीन मंत्री गौतम देब, ज्योतिप्रिया मलिक और मलय घटक यहां आकर गए। डेढ़ हजार रुपए महीने की राहत और एरियर की मंजूर किया गया। भुगतान अब तक शुरू नहीं हुआ है। समिति के सदस्य दिलीप सरकार कहते हैं, ‘भूख से ये लोग मरे हैं। 11 साल से हमने कोई त्योहार नहीं मनाया। घरों में कुपोषण के कारण धीरे-धीरे हालात बिगड़े। बीमारों का इलाज बूते के बाहर है। 40 फीसदी मजदूर दिल्ली से लेकर केरल तक काम तलाशने गए। कई लौटकर आ गए। रोजगार गारंटी या बागानों में मिलने वाले अस्थाई काम के भरोसे घर चल रहे हैं।’ स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने दार्जिलिंग एंड दुआर्स टी वर्कर्स रिलीफ ऑर्गनाइजेशन बनाकर इस बदहाली को उजागर किया।
बागानों में तृणमूल कांग्रेस और सीपीएम समेत चार संगठनों की मजदूर यूनियनें हैं। मगर ज्यादातर लोग इनकी आपसी खींचातानी को भी बागानों की बदहाली के लिए जिम्मेदार मानते हैं। चाय उद्योग के प्रसिद्ध विशेषज्ञ डॉ. आईडी सिंह कहते हैं कि बेहतर प्रबंधन हो तो कोई भी बागान कभी घाटे में नहीं हो सकता। आश्चर्य है कि रेेड बैंक बागान इतने सालों से बंद है। लोग मर रहे हैं। सरकार को फौरन इसकी लीज रद्द करनी चाहिए।
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-1932 के इस बागान में कई फिल्मों की शूटिंग हुई। अदाकार अशोक कुमार और वैजयंती माला की बांग्ला फिल्म हाटे बाजारे की शूटिंग दो महीने तक चली थी। यह फिल्म बाद में हिंदी में भी आई। शक्ति सामंत ने बन जसना को भी यहीं फिल्माया था।
-2003 में सबसे पहले काम ठप हुआ। 2011 में प्रबंधन बदला तो फिर काम शुरू हुआ मगर एक ही साल में फिर बंद हो गया। पुराने प्रबंधन ने एक और कोशिश की मगर अक्टूबर 2013 के बाद से ताले लगे।
-2700 मजदूर हैं। इनमें डेढ़ हजार स्थाई कामगार। 90 फीसदी मजदूर तीन पीढ़ी से जुड़े हैं।
-5 करोड़ रुपए भविष्य निधि, गे्रच्युटी और बोनस के बकाया हंै।
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केस-1
सुनीता उरांव। उम्र 50 साल। पिछली 2 जुलाई को सुनीता के पति जुलाव की मौत हुई। तीन बच्चों का परिवार है। दो विवाहित बेटे हैं। एक छठवीं तो दूसरा नौंवी तक पढ़ा। सारे लोग अस्थाई मजदूरी के भरोसे हैं। सब मिलाकर पांच हजार रुपए महीने कमा पाते हैं। सुनीता कहती है, बागान बंद होने के बाद से ही घर में खाने के लाले पड़े रहे। हमारे घर में सूखे चावल के सिवा आज भी कुछ नहीं है।
केस-2
माया गुरंग। उम्र 40 साल। 19 फरवरी को माया के भाई राम कुमार की मौत हुई। वह 37 साल का था। उसकी पत्नी इंदु काम की तलाश में इन दिनों अपने किसी रिश्तेदार की मदद से दिल्ली में है। गांव में उसके तीन बच्चों और बीमार बूढ़े मां-बाप की जिम्मेदारी माया पर है। मां दो साल पहले लकवे की चपेट में आ गईं। अस्थाई काम से माया बमुश्किल ढाई हजार रुपए कमा पाती हैं। माया ने बताया, रामकुमार पिछले साल काम के लिए केरल तक गया। एक होटल में मामूली पगार पर नौकरी मिली। तीन महीने में लौटना पड़ा।
केस-3
लक्ष्मी उरांव। उम्र 23 साल। 19 जुलाई को उसके पति 32 साल के कालीराम की मौत हुई। उसके पैर में संक्रमण हो गया था। जैसे-तैसे जलपाई गुड़ी के अस्पताल लेकर जा पाए थे। एक ही रात में मौत। दो बच्चे हैं। कालीराम भी आठ महीने केेरल में काम करके लौट आया था। बागानों में मजदूरी करके 80 रुपए रोज कमा रही लक्ष्मी बताती है कि स्थाई आमदनी का कोई जरिया नहीं है। हमें याद नहीं कि पिछली बार अच्छा भोजन हमने कब किया था?






Wednesday 7 January 2015

धर्म की मूल प्रति


प्रिय धर्मप्रेमी जनता,
 अब तक कुंडलिनी जागरण के संबंध में पुस्तकों में ही पढ़ा था। कभी-कभी ध्यान करता हूं मगर ऊर्जा एक चक्र के आसपास भी नहीं पहुंच सकी है। कुंडलिनी जागरण के समय अनुभूति क्या होती है, इसका भी कोई अनुमान नहीं है। अनेक विद्वानों को सुना। कुंभ में भटका। आश्रमों में गया। मगर कोई लाभ नहीं हुआ। तीन दिन पहले शरीर के भीतर के सातों चक्र हिल गए। आचार्यश्री असदुद्दीन औवेसी के मंगल विचार सुने तो जीवन में प्रथम अवसर आया जब धर्म का तत्वज्ञान आत्मसात हुआ। महाज्ञाता 1008 औवेसीजी ने कहा कि हर मनुष्य जन्म से मुसलमान है। मां-बाप उसे दूसरे धर्म में परिवर्तित करने का महापाप कर रहे हैं। और इसलिए इस्लाम समस्त धर्मों का असली घर है।
आचार्यजी के इस कथन ने कुछ प्रश्न अवश्य उत्पन्न कर दिए। ईश्वर पहली बार बड़ा मजाकिया किस्म का मालूम हुआ। वह दस हजार साल से दुनिया में धर्मों की फोटो प्रतियां ही भेजे जा रहा था। हिंदू, यहूदी, ईसाई, बौद्ध और जैन समेत अनेक धर्म पिछले दस हजार साल में आए। ये सब फोटो कॉपियां थीं। मूल प्रति उसने सबसे बाद में भेजी। संभव है संसार का हिसाब-किताब और दुनिया भर के दस्तावेज सहेजने में उसने कहीं यहां-वहां रख दी हो और भूल गया हो। फिर अचानक धरती पर ईसा की सातवीं सदी में उसे वह खाेई हुई असल प्रति प्राप्त हुई और उसने तत्काल सऊदी अरब के रेगिस्तान के पते पर उस प्रति को भेजने का उत्तम कार्य किया। उसके उपरांत क्या हुआ, यह इतिहास की पुस्तकों में रक्त की लाल स्याही से लिखा है। चूंकि हम असली धर्म के मानने वाले हैं, जो शांति का प्रतीक है। इसलिए इस विषय पर हम चर्चा भी नहीं करेंगे।
 जब ईश्वर ने भूल सुधार करते हुए धर्म की मूल प्रति अरब के पते पर भेजी तो वहां की जनता-जनार्दन के लिए यह सृष्टि का सबसे अनमोल उपहार था। सचमुच वे धरती के सबसे भाग्यवान समुदाय सिद्ध हुए, जिन्हें खुद ईश्वर ने चुना। ईश्वर ने भारत, चीन, इजरायल या जापान में मूल प्रति किसी के पास नहीं भेजी। उसे अवश्य यह भय रहा होगा कि यहां के भटके हुए लोग इसे भी फोटो कॉपी समझ लेंगे। कोई यह विश्वास ही नहीं कर पाएगा कि यह मूल प्रति है। इसलिए इसे नए पते पर भेजना उचित है। बाकी का कार्य ये लोग कर ही लेंगे और अपना सर्वस्व बलिदान करके भी संसार को यह महासत्य बताने में  सदियों तक पूरी शक्ति लगाएंगे कि यही असली और मूल प्रति है।
 सातवीं सदी में सत्य के ईश्वर के उस महान‌ प्रयोग के बाद आती है सीधी इक्कीसवीं सदी। साल 2015। महीना जनवरी। तारीख दो-िदन पहले। स्थान भारत भूमि का महानगर हैदराबाद, जिसका पुराना नाम भाग्यनगर ही था। हम हैदराबाद में न होते हुए भी परम भाग्यशाली हैं कि इस दिन को देखने के लिए जगत में जीवित रहे, जब आचार्यश्री औवेसी ने उस सत्य का उदघाटन एक बार पुन: किया। तो भक्तजनों, आप समझ ही गए होंगे कि धर्म की मूल प्रति हमारे आचार्यजी के पास है। आप सब तत्काल प्रभाव से अपनी दीवारों पर टंगी फोटो कॉपियां फेंक दीजिए और इस पुण्य अवसर पर चेत जाइए।
अगर कोई असली बात आपको बताए और बार-बार बताने के पश्चात भी आपकी समझ में न आए तो क्रोध नहीं आएगा? गुस्से में िहंसा ही होगी। जो लोग हिंसा के माध्यम से 1400 साल से एक सरल तथ्य संसार के गले में उतारने का प्रयत्न कर रहे हैं, वे कहां गलत हैं? लेकिन वही सरल बात हमारे आचार्य औवेसी ने कितने उम्दा तरीके से बता दी। मात्र दो-तीन वाक्यों में। यही ताे परमज्ञान का प्रमाण है। तो एक बार जयकारा लगाइए, आचार्यश्री श्री 1008 औवेसीजी महाराज की जय।
 एक तकनीकी प्रश्न आचार्यजी से पूछना था, जब भी हैदराबाद में उनके आश्रम में जाने का योग बनेगा अवश्य पूछूंगा। जब हर मनुष्य जन्म से मुसलमान होता है और मां-बाप उसे दूसरे धर्म में भगा ले जाते हैं तो बालक के जननांग की जन्म से कटी हुई त्वचा को वे कैसे जोड़ देते होंगे। हे ईश्वर उन माता-पिताओं को क्षमा करना। वे नहीं जानते कि वे क्या फ्राड कर रहे हैं?

कालसर्प योग

ये विवरण आप अपने विवेक से पढ़ें। ये महाराष्ट्र की मेरी यात्राओं के अनुभव हैं। मैं त्रयम्बकेश्वर का जिक्र कर रहा हूं , जो जन्मकुंडली और ज...